उठो! किसे और क्यों उठाना चाहते थे स्वामी विवेकानंद ? देश की उन्नति और तरक्की के लिए प्रयासरत स्वामी विवेकानंद उस शक्ति को उठाना चाहते थे जो भी किसी देश के विकास का आधार है I 'जोशीला युवा जोशीला देश' यह भाव रहा होगा उनका जब उन्होंने' 'उठो' शब्द कहा था I यदि आज के सन्दर्भ में भारतीय युवा के लिए यह शब्द बोला या कहा जाये तो इसका तात्पर्य है किकर्तव्यविमूढ बन कर बैठे न रहो, साधनों के अभाव या समय के अभाव का बहाना न बनाओ I मेरे देश की युवा शक्ति ! स्वयं को चारदीवारी कि बहार की दुनिया के लिए उठाकर चल दो जिस 4x4 की दुनिया में ही तुम सिमटकर रह गए हो उस को लाँघ कर उठ खड़े हो जाओ I जैसे ही उठोगे वैसे ही अपना तंद्रालस त्याग कर जाग जाओ I जो विदेशी सभ्यता का भूत सिर से माथे चढ़ कर बोल रहा है, जिस अज्ञानतावश गहरी नींद में सोये हो, उस नींद का त्याग कर जागृत हो जाओ I पहले उठो फिर जागो I अपनी सोइ सृजन शक्ति को जगाओ I जामवंत ने जब हनुमान को उनकी सोइ शक्ति की याद दिलाई तो वे असंभव दिखने वाले कार्य को सहजता से कर गए I उन्होंने एक छलांग में सौ योजन समुद्र पर कर दिया I यह भाव है विवेकानन्द का इन शब्दों के पीछे उठो, जागो; कि हे मेरे देश की युवाशक्ति ! अपने समस्त बंधनो के दायरे को तोड़कर उठो अज्ञानतावश पनपे अंधकार रूपी नींद व् आलस का त्याग कर जागो I
अब प्रश्न यह है कि युवा को जगाने के पीछे विवेकानंद का क्या उद्देस्य रहा होगा ? युवा अर्थात जिनकी उम्र १६-३५ वर्ष के बीच है या हर वह व्यक्ति जिसका ह्रदय जोश से भरा है जो सीमित साधनों से भी सृजनात्मक करने की सोच रखता है I आज़ादी व्यक्तिगत है अंत आज़ाद देश के प्रत्येक नागरिक का मुख्य कर्तव्य है कि वह स्वयं को पुरानी रूढ़ियों व् उन परम्पराओं से मुक्त करे जो मानवता विरोधी है जो देश की आज़ादी की गरिमा को कलंकित कर सकती है I यह तथ्य स्पष्ट है कि विवेकानंद न केवल आयु सीमा के अनुसार युवाओं को जागृत्त कर देश विकास के कार्य में लगाना चाहते थे अपितु वे प्रत्येक भारतीय को मोह-अज्ञान के बंधन से मुक्त कर देश निर्माण में लगाना चाहते थे I वे चाहते थे कि भारत देश के जन-जन में ही नहीं अपितु सम्पूर्ण धरा के भीतर जोश भर दें कि मानवता सबसे बड़ा धर्म है और मानवता का विकास ही सबसे बड़ा कर्म है I तभी तो भारतीय संस्कृति का मूलाधार- मुख्य मानवीय मूल्य' वसुधैव कुटुम्बकम' का नारा या भाव साकार रूप ले सकता है I
वर्षों पहले विवेकानंद ने मानवता के लिए कितनी गहन बात, कितना गहरा विचार दिया है कि हे मानव ! उठो और जागो और तब तक ना रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए । उठ गए, जाग भी गए ; पर विवेकानंद कहते हैं कि मात्र उठना - जागना ही पर्याप्त नहीं है, क्योंकि लक्ष्य बडा है और लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयास करना जरूरी है। परेशानियां आये तो आये, समस्याएं रास्ते में खडी हों तो खडी रहें ; हमारा मुख्य लक्ष्य तो मंज़िल की ओर निरंतर बढ़ना है। उन्होंने आह्वान किया कि देश की युवा पीढी का अर्थात हरेक उस व्यक्ति का जिसका हृदय जोशीला है, जजबा है देश के लिए कुछ कर गुजरने का, उस व्यक्ति का जो विध्न बाधाओं के समक्ष चट्टान की तरह अडिग खड़ा रह सकने का हौंसला कर सकता है। जो छोटा सा हो पर हौंसला उस दीए की भांति हो जो कि गहन अंधकार से लड़कर रोशनी फैला सके; कि हौंसला उस अंकुर सा हो जो धरा की कठोर सतह को तोड़कर अपना अस्तित्व लेकर खड़ा हो जाए और सूर्य की तरफ निर्भय होकर देखता रह जाए ।
विवेकानंद किस लक्ष्य के लिए भारतीयों को उठाना - जगाना चाहते थे ? इतना गहन विचार रखने के पीछे क्या लक्ष्य रहा होगा उनका ? जाहिर है कि लक्ष्य बहुत बड़ा सोचा होगा तभी उन्होंने युवाओं को सचेत किया और लक्ष्य तक बढ़ने की बात की और कहा कि जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए रुकना भी नहीं है । जो लक्ष्य उनकी सोच में, उनके के दिल में था I वह था भारत के पुनरुत्थान का लक्ष्य , भारत के प्राचीन गौरव को पुनः पाने का लक्ष्य, भारत के सोने की चिड़िया बन जाने का लक्ष्य, विश्वगुरु के रूप में समस्त वसुधावासियों को सच्चा ज्ञान, मानवता का ज्ञान देने का लक्ष्य, समस्त वसुधावासियों को एक परिवार की भांति आपस में जोड़ने का लक्ष्य, मानव का मानव के लिए या प्राणी मात्र के लिए प्रेम भरा हृदय पाने का लक्ष्य। इसे पाने के लिए युवा पीढ़ी को प्रयास व् कड़ी मेहनत करना सीखने का लक्ष्य रहा होगा तभी इतनी गहन बात, इतना महान विचार उन्होंने भारतीयों के समक्ष रखा ।
सम्पूर्ण विश्व को मानवता के सूत्र में जोड़ने के लिए भारतीय सभ्यता - संस्कृति के मूल्य ही हैं जो इस सपने को साकार कर सकते हैं । विवेकानंद के इस सपने 'भारत का पुनरुत्थान' के लिए कार्य कुछ इस कदर करना शुरू करना होगा । सबसे पहले प्रत्येक भारतीय को स्वयं को युवा सोचा व् जोश के साथ कमर कसनी है कि देश के अतीत के गौरव को पुनः पाना ही है । मानसिकता बदलकर ही सही मायने में प्रयास किये जा सकते हैं । मज़बूत इरादों के साथ छोटे-छोटे प्रयास करने हैं; जैसे कि प्रत्येक युवा ठान ले कि जो भी हुनर कौशल वह सीख सकता है या उसे आता है; कम से कम दस युवा साथी और तैयार करेगा; वह हुनर तकनीक से जुड़ा हो या शिक्षा से, सृजन से जुड़ा हो या कोई अन्य कला से । यदि हम आरक्षण रुपी दंश से देश को मुक्त करने का जज्बा अपने भीतर कूट-कूटकर भर लें तो मात्र अपने कौशल, अपनी मेहनत पर विश्वास करके आगे बढ़ सकते हैं । अपना स्वार्थ भूलकर एक बात जेहन में लाई जा सकती है कि मैं अपने विकास के साथ - साथ अपने परिवार, अपने मोहल्ले या वहां तक जहाँ तक मेरी सामर्थ्य है सबका विकास करने के लिए तत्पर हूँ । यदि मैं सभी को परिवर्तित नहीं कर सकता तो कम से कम खुद से वादा कर सकता हु कि बिना दहेज शादी करूँगा। अपनी संतान को संतान के रूप में देखूंगा; पुत्र या पुत्री के रूप में नहीं अर्थात पुत्र - पुत्री दोनों में किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करूँगा ।
विवेकानंद कोई पंच भौतिक शरीर मात्र नहीं थे जो भारतीय धरा पर आए और प्रकृति के नियमानुसार चले गए । वो एक ऐसा भाव, एक ऐसा विचार, एक ऐसी सोच के रूप में प्रत्येक भारतीय की नस - नस में विद्यमान है जिन्हे महसुस कर प्रत्येक भारतीय अपनी युवा सोच युवा जोश के साथ देश के पुनरुत्थान में भागीदारी दर्ज कर सकता है । आओ अपने भीतर के विवेकानंद को जगाये और देश के पुनरुत्थान के पुनीत कार्य के लक्ष्य की ओर चलें, चलते चलें, चलते चलें तब तक चलें जब तक देश अपने अतीत के गौरव को पुनः प्राप्त न कर ले ।
Dr. Rajal Gupta's Message to India's Youth
प्रिय युवा, अपनी क्षमता में विश्वास रखें, चुनौतियों को स्वीकार करें और दुनिया में सकारात्मक परिवर्तन के लिए प्रेरणास्रोत बनें। राष्ट्रीय युवा दिवस की शुभकामनाएं !
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